सूत्र विधि → यह विधि संस्कृत से ग्रहण की गई है। → इसमें व्याकरण के भिन्न-भिन्न नियमों को सूत्र के रूप में बदल दिया जाता है। → विद्यार्थियो...
सूत्र विधि
→ यह विधि संस्कृत से ग्रहण की गई है।
→ इसमें व्याकरण के भिन्न-भिन्न नियमों को सूत्र के रूप में बदल दिया जाता है।
→ विद्यार्थियों को ये सूत्र कंठस्थ करा दिए आते हैं और बाद में अनेक उदाहरणों द्वारा इन सूत्रों को स्पष्ट किया जाता है।
→ पाणिनि के अष्टाध्यायी रचना में सूत्र विधि का प्रयोग हुआ है।
→ यह विधि मूल रूप से भाषण लेख, निबंध शिक्षण की विधि है। यह विधि निगमन विधि का ही परिष्कृत रूप है।
→ इस विधि को 'निगमन विधि' या ' पाठ्यपुस्तक प्रणाली' भी कहा जाता है।
→ निगमन विधि के शिक्षण सूत्र -
• इसमें शिक्षण सूत्र सामान्य से विशिष्ट की ओर का अनुसरण किया जाता है।
• सूक्ष्म से स्थूल की ओर
• नियम से उदाहरण की ओर' इस विधि में भी प्रयुक्त होते हैं।
दोष :-
• बिना समझे रटाना अमनोवैज्ञानिक है। विद्यार्थी ध्यानाकर्षण नहीं हो पाता।
• इस विधि में समय और श्रम दोनों का दुरुपयोग होता है।
• इस विधि द्वारा भाषा के प्रयोग का ज्ञान और अभ्यास नहीं हो पाता है।
• बिना समझे रटना मनोवैज्ञानिक दृष्टि से अनुपयुक्त है। बाद में वृत्ति, व्याख्या, उदाहरण, अभ्यास आदि की फिर भी आवश्यकता पड़ती है।
• अमनोवैज्ञानिक, नीरस तथा अरुचिकर प्रणाली होने के कारण इसका प्रयोग नहीं करना चाहिए।
• इस प्रणाली के अनुसार विद्यार्थियों को सूत्र रटा दिए जाते हैं। यह प्रणाली व्याकरण पढ़ाने की दृष्टि से उचित नहीं क्योंकि विद्यार्थी सूत्रों को रट तो लेते हैं किंतु वे उन्हें समझते नहीं है और नए व्याकरण के इन नियमों का उन्हें कुछ व्यावहारिक ज्ञान ही प्राप्त होता है। अतः इस प्रणाली का प्रयोग व्याकरण के अध्यापन में नहीं करना चाहिए।