भाषा शिक्षण यंत्र-उपकरण विधि → इस विधि में भाषा सिखाने के लिए यंत्रों, उपकरणों का उपयोग किया जाता है इसलिए भाषा यंत्र विधि कहा जाता है। → इस...
भाषा शिक्षण यंत्र-उपकरण विधि
→ इस विधि में भाषा सिखाने के लिए यंत्रों, उपकरणों का उपयोग किया जाता है इसलिए भाषा यंत्र विधि कहा जाता है।
→ इस विधि में यंत्र उपकरणों के रूप में टेप रिकॉर्डर, ग्रामोफोन, (सीता वाद्य यंत्र) लिंग्वाफोन, प्रोजेक्टर, चित्र, प्रतिमूर्ति आदि का प्रयोग किया आता है।
→ इस विधि में ग्रामोफोन अथवा टेप रिकॉर्डर द्वारा चित्र का वर्णन सुनाया जाता है।
→ यह विधि उच्च प्राथमिक (पूर्व माध्यमिक) स्तर हेतु उपयोगी है।
→ इस विधि में अनुकरण प्रधान होता है।
→ इस विधि का सबसे बड़ा लाभ यह है कि व्यवस्थित उच्चारण की शिक्षा प्राप्त करते हैं तथा उनके उच्चारण में भी एकरूपता आ जाती है क्योंकि ग्रामोफोन रिकॉर्ड बास्ट बजने पर उनमें से एक सी ध्वनि निकलती है।
→ यह विधि अधिक व्यय साध्य होने के कारण निर्धन देशों के शिक्षण के उपयुक्त नहीं है।
→ इस विधि का प्रयोग वर्तनी एवम् उच्चारण संबंधी समस्याओं को दूर करने में किया जाता है।
→ यह विधि 'अनुकरण विधि' का दूसरा रूप कही जा सकती है।
→ इसमें अध्यापक के स्थान पर 'सीतावाद्य के रिकार्डों' का प्रयोग किया जाता है।
→ इस विधि के प्रयोग से बच्चे खेल-खेल में रचना करना सीख जाते हैं।
→ यह बाल-केंद्रित व रोचक विधि है जो उच्चारण क्षमता का विकास करती है।
भाषा यंत्र विधि के लाभ
• बालकों को व्यवस्थित रूप से शिक्षा प्रदान की जा सकती है। यह रोचक विधि है।
• बालकों के उच्चारण में एकरूपता आ जाती है।
भाषा यंत्र विधि के दोष
• यह खर्चीली, लंबी व दुर्लभ विधि है।
• पाठ्यक्रम समय पर पूर्ण हो पाना संभव नहीं।
• प्रशिक्षित अध्यापकों का अभाव