वाचन विधि → वाचन का अर्थ है - अर्थ ग्रहण करते हुए पढ़ना। → इस विधि का उद्देश्य बालकों के स्वर के आरोह-अवरोह का ऐसा अभ्यास करा दिया जाए कि वे...
वाचन विधि
→ वाचन का अर्थ है - अर्थ ग्रहण करते हुए पढ़ना।
→ इस विधि का उद्देश्य बालकों के स्वर के आरोह-अवरोह का ऐसा अभ्यास करा दिया जाए कि वे भावों के अनुकूल स्वर में लोच देकर पढ़ सकें।
• वाचन के प्रकार :-
वचन के दो प्रकार माने जाते हैं - (1) सस्वर वाचन (Loud Reading) (2) मौन वाचन (Silent Reading)
(1) सस्वर वाचन :-
स्वर सहित वाचन को सस्वर वाचन कहा जाता है, इसमें छात्र पढ़ने के साथ-साथ बोलता भी जाता है। इसमें चार प्रक्रिया में सम्मिलित है - लिपिबद्ध अक्षरों को देखना, पहचाना, शब्दों को समझना और उच्चारण करना तथा ग्रहण करना
सस्वर वाचन करते समय ध्यान रखने योग्य बातें :-
सस्वर वाचन हमेशा खड़े होकर किया जाए।
सस्वर पाठ के समय पुस्तक बाएं हाथ में रखे।
पुस्तक आंखों से कम से कम 12° डिग्री की दूरी पर रहे और इस प्रकार पकड़ी जाए कि वह हाथ के 135° का कोण बनाएं।
अध्यापक स्वर पाठ के लिए छात्रों को एक निश्चित क्रम से न चुने वरन् कक्षा के बीच से किसी भी विद्यार्थियों को पढ़ने पढ़ने के लिए कहें।
छात्र सीधे खड़े होकर ही सस्वर पाठ करें झुक कर खड़े होना अथवा हाथ-पैर हिलाना आदि आदतें सस्वर वाचन में अवांछनीय हैं।
सस्वर वाचन के तीन भेद होते है -
(अ) आदर्श वाचन - जब पाठ्य सामग्री को अध्यापक स्वयं वाचन करके छात्रों के सम्मुख प्रस्तुत करता है तो उसे आदर्श वाचन कहते हैं। आदर्श वाचन अध्यापक के द्वारा ही किया जाता है।
(ब) अनुकरण वाचन - आदर्श वाचन के पश्चात छात्रों द्वारा अनुकरण वाचन किया जाता है। जब छात्र अध्यापक के आदर्श पाठ के अनुरूप वाचन करने का प्रयत्न करते हैं तो उसे अनुकरण वाचन कहा जाता हैं।
- अनुकरण वाचन को भी दो भागों में बांटा जा सकता है -
(१) वैयक्तिक वाचन - माध्यमिक कक्षाओं में छात्र प्रायः वैयक्तिक वाचन ही करते हैं। वैयक्तिक वाचन के माध्यम से छात्रों को वाचन का अभ्यास हो जाता है तथा शिक्षक को भी वाचन की त्रुटियों को दूर करने में सहायता मिलती है।
(२) सामूहिक वाचन - सामूहिक वाचन का अभ्यास प्रारंभिक कक्षाओं में कराया जाता है।
(स) समवेत वाचन - शिक्षक और विद्यार्थी दोनों के द्वारा छोटी कक्षाओं के लिए उपयोगी।
सस्वर और वाचन की विधियां :-
1. देखो और कहो विधि - चित्रों की सहायता से शब्दों के आधार पर वर्णों को पहचानना।
2. अक्षर बोध विधि - यह प्राचीनतम विधि है। इस विधि में बालकों को सबसे पहले अक्षरों के बारे में जानकारी दी जाती है, फिर अक्षरों से शब्दों का निर्माण करना सिखाया जाता है तथा इसके बाद शब्दों से वाक्य रचना का निर्माण करना सिखाया जाता है।
3. ध्वनि साम्य विधि - इस विधि में बालकों को अक्षर ज्ञान के साथ-साथ ध्वनि साम्य वाले शब्दों का भी ज्ञान करवाया जाता है।
4. कहानी विधि - यह विधि प्राथमिक स्तर के लिए विशेष लाभदायक विधि है।
5. अनुकरण विधि - इसका अन्य नाम सुनो और कहो विधि है। अंग्रेजी शिक्षण हेतु प्रभावी विधि।
6. वाक्य शिक्षण विधि - इस विधि में वाक्य को श्यामपट्ट पर लिख दिया जाते हैं और छात्र उन वाक्यों को देखते हैं फिर याद कर लेते हैं।
7. भाषा शिक्षण यंत्र विधि - इस विधि में यंत्रों के माध्यम से भाषा शिक्षण कार्य करवाया जाता है।
8. कविता विधि - इस विधि में वाक्य कविता की पंक्तियों के रूप में लिखे जाते हैं।
9. सामूहिक पठन विधि
10. साहचर्य विधि - इस विधि के प्रवर्तक मैडम मारिया मोंटेसरी है।
(2) मौन वाचन :-
→ इस विधि में अध्यापक सर्वप्रथम विषयवस्तु का वाचन करता है जिसे आदर्शवाचन कहा जाता है तत्पश्चात् छात्र उसका अनुकरण वाचन करता है।
→ अनुकरण वाचन में शिक्षक सजग और सतर्क रहकर छात्रों की वाचन / उच्चारण की त्रुटियों का निवारण करता रहता है।
• वाचन शिक्षण की विधियाँ :-
1. संश्लेषण विधि - (i) अक्षर बोध विधि (ii) ध्वनि साम्य विधि
2. विश्लेषण विधि - (i) देखो-कहो विधि (ii) वाक्य शिक्षण विधि (iii) अनुकरण विधि (iv) कहानी विधि (v) भाषा शिक्षण यंत्र विधि (vi) कविता विधि
मौन वाचन :-
→ मौन वाचन का स्थूल रूप में अर्थ है बिना होंठ हिलाए चुपचाप पढ़ना, परंतु सूक्ष्म अर्थों में मौन पाठ का अर्थ चुपचाप पढ़ते हुए अधिक से अधिक अर्थ ग्रहण करना है।
→ पद्य-पाठ में मौन वाचन का निषेध है।
→ मौन वाचन में अर्थग्रहण शीघ्रता से होता है।
→ उच्चारण दोष छिप जाते हैं।
→ पाठ्य-वस्तु के केन्द्रीय भाव या विचार ग्रहण करने का क्षमता विकसित होती है।
→ अनावश्यक स्थलों के छोड़ते हुए, मुख्य सूचनाओं एवं भावों को ग्रहण करना।
→ तथ्यों, भावों एवं विचारों की क्रमबद्धता पहचान सकना व उनमें कार्य कारण संबंध बता सकना।
→ छात्रों के शब्दकोष का विकास करना।
→ मौन वाचन बालकों को चिंतनशील बनाता है तथा उनकी कल्पना शक्ति का विकास होता है।
→ मौन वाचन तीसरी कक्षा से शुरू करना चाहिए।
→ आत्मीकरण के पश्चात अर्थ ग्रहण में सहायता की दृष्टि से मौन सर्वाधिक उपयुक्त है।
→ सस्वर वाचन की सफलता ही मौन वाचन का मूलाधार है।
मौन वाचन के उद्देश्य :-
1. छात्रों को बिना स्वरोच्चारण के शीघ्रता से पढ़ना सिखाना।
2. नेत्रों की गति-प्रत्यागति तथा विचारों के संक्रमण में सामंजस्य स्थापित करना
3. चिंतन एवं अवधान शक्ति को एकाग्र करने का प्रशिक्षण प्रदान करना
4. वाचन की तीव्रता के साथ विचार-ग्रहण की शीघ्रता का अभ्यास कराना।
5. छात्रों की विभिन्न विषयों को पढ़ने की रुचि उत्पन्न करना।
मौन वाचन के दो भेद है :-
1. गंभीर मौन वाचन - गंभीर मौन वाचन का अर्थ प्रत्येक शब्द, वाक्य तथा भाव पर गंभीरतापूर्वक विचार अथवा मनन करता है।
गंभीर वाचन के उद्देश्य -
• भाषा पर अधिकार
• विषय पर अधिकार
• केंद्रीय भाव की खोज
• नवीन सूचना एकाकीकरण
2. द्रुत वाचन
द्रुत वाचन के उद्देश्य -
• सीखी गई भाषा का अभ्यास
• अवकाश का सदुपयोग
• साहित्य का परिचय
• आनंद प्राप्ति