दूरस्थ शिक्षण विधि आविष्कार :- ब्रिटेन में → जब विद्यार्थी किसी कारण विशेष से विद्यालय परिसर नहीं जा सकता और अपनी शिक्षा नियमित नहीं रख...
दूरस्थ शिक्षण विधि
- आविष्कार :- ब्रिटेन में
→ जब विद्यार्थी किसी कारण विशेष से विद्यालय परिसर नहीं जा सकता और अपनी शिक्षा नियमित नहीं रख पाता है तो "दूरस्थ शिक्षण प्रणाली" के माध्यम से शिक्षक के सामने न होकर भी शिक्षण कार्य में संलग्न रहता है।
→ इस विधि को पत्राचार, बहुमाध्यम शिक्षा, मुक्त अधिगम, टेली एजूकेशन, गृह अध्ययन, स्वतंत्र अध्ययन आदि नामों से जाना जाता है।
→ दूरस्थ शिक्षण 'स्व अनुदेशन प्रणाली' पर आधारित होता है।
→ इसे नवाचार विधि भी कहा जाता है। इस विधि में बालक अपने घर पर ही रह कर स्वाध्याय द्वारा विषय वस्तु का ज्ञान प्राप्त करते हैं।
→ इस शिक्षण पद्धति का उद्देश्य सभी को शिक्षा के समान अवसर सिद्धान्त को बढ़ावा देना है।
→ इस विधि में छात्रों के ऊपर बाहर से कुछ थोपा नहीं जाता वरन छात्र अपने प्रयत्नों से स्वयं सीखता है। यह निरौपचारिक शिक्षा प्रणाली है।
→ इस विधि में समय तथा उम्र की कोई बाध्यता नहीं पाई जाती।
→ यह एक लचीली विधि है जो छात्र को अपनी इच्छानुसार, अपनी योग्यता एवं गति के अनुसार पढ़ने का अवसर प्रदान करती है।
→ रेडियो, टेलीविजन, इंटरनेट व मुद्रित पत्राचार पाठ्यक्रम दूरस्थ शिक्षा के उत्तम साधन है। यह प्रणाली छात्रों में स्वाध्याय की प्रवृत्ति विकसित करने के साथ ही अंत: अभिप्रेरणा जाग्रत करती है।
- भारत में प्रथम खुला विश्वविद्यालय 1982 में हैदराबाद में 'आंध्रप्रदेश खुला विश्वविद्यालय' के नाम से खोला गया।
- राजस्थान में प्रथम खुला विश्वविद्यालय 1987 में कोटा में कोटा खुला विश्व विद्यालय नाम से शुरु हुआ जिसका वर्तमान नाम 'वर्धमान महावीर खुला विश्वविद्यालय' है।
→ इस प्रणाली में छात्र अपनी कठिनाइयों एवं शंकाओं के उत्तर भी योग्य 'अध्यापक पैनल' से प्राप्त कर सकते हैं। कभी-कभी इस प्रकार के शिक्षण हेतु कुछ दिनों का एक सत्र निर्धारित स्टडी सेंटर्स पर आयोजित किया जाता है। ( कार्यगोष्ठी आयोजन - 2nd Grade-2013)
→ यह विधि कामकाजी या सेवारत कर्मचारियों के लिए अत्यंत उपयोगी है।
→ इस प्रणाली से ज्ञानात्मक, भावात्मक तथा मनोवैज्ञानिक तीनों प्रकार के उद्देश्यों की प्राप्ति संभव होती है।
परिभाषाएँ :-
पीटर्स (1873) के अनुसार :- "दूरस्थ शिक्षा ज्ञान कौशल तथा अभिवृद्धि प्रदान करने की एक नवीन तथा उभरती हुई शैक्षिक संरचना है।"
बोर्जी होमवर्ग (1981) के अनुसार - “शिक्षा के सभी स्तरों पर अध्ययन के विभिन्न प्रकार जो शिक्षक के निरंतर तत्कालीन निरीक्षण नहीं है, उन्हें दूरस्थ शिक्षा कहा जाता है।"
जी. रामा रेड्डी (1988) के अनुसार - “बुनियादी तौर पर दूरस्थ शिक्षा प्रणाली का जोर छात्र तथा शिक्षक के अलगाव पर है जिससे छात्रों को स्वायत्त रूप से सीखने का अवसर मिलता है। दोनों के मध्य जो भी माध्यम हो उसके द्वारा परस्पर संचार स्थापित किया जाता है। जैसे- डाक या इलेक्ट्रॉनिक प्रेषण, टेलीफोन, टेलेक्टस या फैक्स, दो तरफा रेडियो-जिसमें संगणक और टी.वी. के पर्दे जुड़े रहते हैं और संगणक द्वारा नियंत्रित अंतः क्रियात्मक 'वीडियो डिस्क' आदि।"
वैडमेयर (1977) के अनुसार, “स्वतंत्र अध्ययन का उद्देश्य विद्यालय के छात्रों को कक्षा के अनुपयुक्त स्थान तथा प्रारूप से मुक्त करना है तथा विद्यालय से बाहर के छात्रों को उनके अपने वातावरण में अध्ययन करते रहने के अवसर प्रदान करना होता है। इस प्रकार से छात्रों में स्वतः निर्धारित अधिगम की क्षमता विकसित होती रहती है।"
दोष : -
→ प्रायोगिक विषयों का शिक्षण कठिन है।
→ तुरंत प्रतिपुष्टि प्राप्त नहीं होती है।
→ समय अधिक लगता है। इसके परिणाम दूरगामी होते है।
→ मंदबुद्धि या कमजोर छात्रों के लिए ज्यादा लाभदायक नहीं।