ध्वन्यात्मक विधि ( फोनेटिक मैथड़ ) → इस विधि का प्रतिपादन माईकल सेमर ने किया। → शब्द, वाक्य और वाक्यों के अर्थ पर ध्यान न देकर ध्वनियों पर ...
ध्वन्यात्मक विधि ( फोनेटिक मैथड़ )
→ इस विधि का प्रतिपादन माईकल सेमर ने किया।
→ शब्द, वाक्य और वाक्यों के अर्थ पर ध्यान न देकर ध्वनियों पर अधिक बल दिया जाता है इस कारण इसे ध्वन्यात्मक विधि कहा जाता है। इस विधि को संश्लेषणात्मक विधि भी कहा जाता है।
→ कुछ मनोवैज्ञानिक इस विधि को 'ध्वनि वैज्ञानिक विधि' या 'स्वप्न विधि' भी कहते हैं। यह प्रणाली 'अक्षर बोध विधि' का ही परिष्कृत रूप है।
→ इस विधि में प्रत्येक अक्षर ध्वनि को शुद्ध रूप में प्रस्तुत कर बालक को स्पष्ट उच्चारण का अभ्यास करवाया जाता है।
→ स्पष्ट उच्चारण के साथ ही लेखन में शुद्धता आ जाती है।
→ यह विधि शब्द या वाक्यों के अर्थ पर उतना बल नहीं देती जितना उनकी ध्वनियों के स्पष्ट उच्चारण पर।
→ इस विधि में स्वर तथा व्यंजनों का उच्चारण स्तर व उनके प्रयोजनों का ज्ञान कराया जाता है। ( लिंगुआाफोन, भाषा प्रयोगशाला, इयरफोन आदि यंत्रों का प्रयोग )
→ यह अंग्रेजी शिक्षण की विधि है। यह विधि वर्ण तथा ध्वनि को भिन्न-भिन्न मानती है।
→ यह संश्लेषणात्मक प्रक्रिया से वाक्य संरचना सिखाती है अतः इस विधि को 'संश्लेषणात्मक विधि' भी कहा जाता है।
→व्याकरण शिक्षण के लिए 'आगमन विधि' रचना के लिए 'सुनो-पढ़ो-कहो विधि' तथा वाचन के लिए 'ध्वन्यात्मक विधि' का प्रयोग किया जाता है।
→ यह विधि 'वाचन कौशल' का विकास करती है। इसमें एक जैसे उच्चारित होने वाले शब्दों को एक साथ सिखाया जाता है। जैसे - शर्म, गर्म, मर्म, धर्म या भक्ति, शक्ति, मुक्ति आदि .....
दोष :-
→ अंग्रेजी भाषा उच्चारण में ही ज्यादा उपयोगी।
→ आजकल बच्चों की पुस्तकों में 'अक्षर बोध विधि' तथा 'ध्वनि साम्य विधि' दोनों का समन्वय होता है इन दोनों प्रणालियों को 'ध्वन्यात्मक विधि' भी कहते हैं।
→ भाषा के सभी अंगों को इस विधि से नहीं पढ़ाया जा सकता।
→ केवल ध्वनियों का ही ज्ञान हो पाता है भाषा नहीं सीख पाते।