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Hindi Teaching Method - Abhikramit Anudeshan Vidhi | REET Teaching Method Notes

अभिक्रमित अनुदेशन विधि  → अभिक्रमित अनुदेशन विधि का प्रतिपादन हार्वर्ड विश्वविद्यालय के मनोवैज्ञानिक बी.एफ. स्किनर ने 1954 में किया था।  ...

अभिक्रमित अनुदेशन विधि 


→ अभिक्रमित अनुदेशन विधि का प्रतिपादन हार्वर्ड विश्वविद्यालय के मनोवैज्ञानिक बी.एफ. स्किनर ने 1954 में किया था। 
→ यह विधि स्किनर के "क्रिया प्रसूत अनुबंधन" सिद्धांत पर आधारित है।
→ भारत में इस विधि का प्रयोग सर्वप्रथम 1963 में हुआ। (इलाहाबाद में) 
→ यह शिक्षण की व्यक्तिगत पद्धति है, जिसमें बालक स्वगति से सीखता है।

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• इस सिद्धांत के अनुसार छात्र अधिगम के दौरान पाँच क्रियाओं से गुजरता है :-
1. विषय वस्तु का छोटा पद या फ्रेम प्रस्तुत करने पर छात्र उसको पढ़ता है।
2. फ्रेम में पूछे गये प्रश्न का प्रत्युत्तर लिखता है।
3. अपने प्रत्युत्तर की जाँच कर तुरंत प्रतिपुष्टि (पुनर्बलन) प्राप्त करता है।
4. उत्तर सही होने पर अगली फ्रेम प्रस्तुत की जाती है और गलत होने पर पुन: पिछली फ्रेम संबंधी उपचारात्मक शिक्षण होता है। 
5. अंत में अपने प्रत्युत्तरों का प्रतिवेदन रखकर जॉंच हेतु प्रस्तुत करता है।
(फ्रेम पढ़ना → प्रत्युत्तर लिखना → जॉंच करना → नयी फ्रेम / उपचार → प्रतिवेदन मूल्यांकन) 

अभिक्रमित अनुदेशन के सिद्धांत :


1. लघु सोपानों का सिद्धांत - विषय - वस्तु को विद्यार्थी के समय छोटे-छोटे पदों में विभाजित कर प्रस्तुत किया जाए।

2. सक्रिय सहयोग का सिद्धांत (तत्पर अनुक्रिया का सिद्धान्त) - प्रत्येक फ्रेम का छात्र द्वारा किसी न किसी रूप में अनिवार्यतः उत्तर दिया जाता है।

3. तुरंत आश्वासन का सिद्धांत (सक्रिय प्रत्युत्तर का सिद्धांत ) -  उत्तरित सोपान के सही / गलत उत्तर की जानकारी देते हुए छात्र को पुनर्बलन प्रदान करना।

4. स्वगति का सिद्धांत - अभिक्रमित अधिगम में प्रत्येक छात्र अपनी इच्छा / शक्ति के अनुसार तीव्र या मंद गति से आगे बढ़ता है।

5. छात्र परीक्षण का सिद्धांत (स्व-मूल्यांकन का सिद्धान्त) 
→ छात्रों के सीखने की प्रक्रिया के आधार पर किसी अभिक्रम का सुधार / संशोधन इस सिद्धांत पर आधारित है।

विशेष :- ध्यान रहे कि अभिक्रम अनुदेशन का अनिवार्य सिद्धांत "स्वगति का सिद्धांत" है। 
→ विषय-वस्तु को चार पद / फ्रेम में प्रस्तुत किया जाता है।  1. प्रस्तावना पद 2. शिक्षण पद 3. अभ्यास पद 4. परीक्षण पद 

अभिक्रमित अनुदेशन के प्रकार :

1. रेखीय अभिक्रमित अनुदेशन 

प्रवर्तक - बी.एफ. स्किनर (1954 में) 
उपनाम - बाह्य अभिक्रमित अनुदेशन, श्रृंखला अभिक्रमित अनुदेशन 
सिद्धांत - क्रिया प्रसूत अनुबंधन व पुनर्बलन का सिद्धांत पर आधारित 
विशेष - इसमें सीखे बिना किसी भी परिस्थिति में अगले सोपान में प्रवेश नहीं करता है।

2. शाखीय अभिक्रमित अनुदेशन  

प्रवर्तक - नार्मन ए. क्राउडर
उपनाम - आंतरिक अभिक्रम
→ इसमें सही अनुक्रिया जानने के लिए बहु-विकल्पी प्रश्नों का सहारा लिया जाता है। अत: इसे "बहुरूपिया अभिक्रम" भी कहा जाता है।

3. अवरोही अभिक्रम या मैथेमेटिक्स अभिक्रमित अनुदेशन 

प्रवर्तक - थॉमस एफ. गिल्बर्ट (अमेरिका में गणित विषय के प्रत्यय हल करने के लिए) 
→ यह बी.एफ. स्किनर के 'सक्रिय अनुबंध अनुक्रिया' सिद्धांत पर आधारित है।

4. कम्प्यूटर आधारित अभिक्रमित अनुदेशन 
प्रवर्तक - लारेंस एम. स्टूलरो

परिभाषाएँ -

डी.एल. कुक - "यह व्यक्तिगत अनुदेशन की एक विधि है, जिसमें बालक क्रियाशील रहकर स्वयं की गति से सीखता है तथा अपने उत्तरों की तत्काल जाँच करता है।"
कोरे - "अभिक्रमित अनुदेशन एक ऐसी शिक्षण प्रक्रिया है जिसमें बालक के वातावरण को सुव्यवस्थित कर पूर्व निश्चित व्यवहारों को उसमें विकसित कर लिया जाता है।"